ओ सैयां : अग्निपथ

मेरी अधूरी कहानी, लो दास्ताँ बन गयी
तूने छुआ आज ऐसे, मैं क्या से क्या बन गयी
सहमे हुए, सपने मेरे, हौले-हौले अंगड़ाईयाँ ले रहे
ठहरे हुए, लम्हें मेरे, नयी-नयी गहराईयाँ ले रहे

ज़िन्दगी ने पहनी है मुस्कान
करने लगी है
इतना करम क्यूँ ना जाने
करवट लेने लगे हैं
अरमान फिर भी
है आँख नम क्यूँ ना जाने
ओ सैयां...

ओढूं तेरी काया, सोलह श्रृंगार मैं सजा लूं
संगम की ये रैना, इसमें त्यौहार मैं मना लूं
खुशबु तेरी छू के, कस्तूरी हो जाऊं
कितनी फीकी थी मैं, सिन्दूरी हो जाऊं
सुर से ज़रा, बहकी हुई, मेरी दुनिया थी बड़ी बेसुरी
सुर में तेरे, ढलने लगी, बनी रे पिया मैं, बनी बांसुरी
ज़िन्दगी ने पहनी है मुस्कान...

मेरे आसमां से, जो हमेशा
गुमशुदा थे, चाँद तारे
तूने, गर्दिशों की, लय बदल दी
लौट आये, आज सारे
ओ सैयां...

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