उड़े , खुले आसमान में ख्वाबों के परिंदे : जिंदगी ना मिलेगी दोबारा

उड़े , खुले  आसमान  में  ख्वाबों  के  परिंदे 
उड़े , दिल  के  जहां  मैं  खाबों  के  परिंदे 
ओहो , क्या  पता , जायेंगे  कहाँ 
खुले  हैं  जो  पल , कहे  यह  नज़र 
लगता  है  अब  है  जागे  हम 
फिक्रें  जो  थी , पीछे  रह  गयी 
निकले  उनसे  आगे  हम 
हवा  में  बह  रह i हा i ज़िन्दगी 
यह  हम  से  कह  रही  है  ज़िन्दगी 
ओहो , अब  तो , जो  भी  हो  सो  हो 

उड़े , खुले  आसमान  में  ख्वाबों  के  परिंदे 
उड़े , दिल  के  जहां  मैं  खाबों  के  परिंदे 
ओहो , क्या  पता , जायेंगे  कहाँ  
किसी  ने  छुआ  तो  यह  हुआ 
फिरते  है  महके  महके  हम 
खोयी  हैं  कहीं  बातें  नयी 
जब  हैं  ऐसे  बहके  हम 
हुआ  है  यूँ  के  दिल  पिघल  गए 
बस  एक  पल  में  हम  बदल  गए 
ओहो , अब  तोह , जो  भी  हो  सो  हो 

रौशनी  मिली 
अब  राह  में  है  इक  दिलकशी  सी  बरसी 
हर  खुसी  मिली 
अब  ज़िन्दगी  पे  है  ज़िन्दगी  सी  बरसी 
अब  जीना  हम  ने  सीखा  है 

याद  रहे  कल , आया  था  वोह  पल 
जिसमे  जादू  ऐसा  था 
हम  हो  गए  जैसे  नए 
वो  पल  जाने  कैसा  था 
कहे  यह  दिल  के  जा  उधर  भी  तू 
जहां  भी  लेके  जाए  आरज़ू 
ओहो , अब  तो ...
जो  भी  हो  सो  हो 
जो  भी  हो  सो  हो 
उड़े ..
जो  भी  हो  सो  हो 
उड़े ...
जो  भी  हो  सो  हो 

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