सांवली सी रात : बर्फी

सांवली सी रात हो, ख़ामोशी का साथ हो
बिन कहे, बिन सुने, बात हो तेरी मेरी
नींद जब हो लापता, उदासियाँ ज़रा हटा
ख़्वाबों की रज़ाई में, रात हो तेरी मेरी

झिलमिल तारों सी आँखें तेरी
खारे खारे पानी की झीलें भरे
हरदम यूँ ही तू हंसती रहे
हर पल है दिल में ख्वाहिशें
ख़ामोशी की लोरियां सुन तो रात सो गयी
बिन कहे, बिन सुने...

बर्फी के टुकड़े सा, चंदा देखो आधा है
धीरे धीरे चखना ज़रा
हंसने रुलाने का, आधा-पौना वादा है
कनखी से तकना ज़रा
ये जो लम्हें हैं, लम्हों की बहती नदी में
हाँ भीग लूं, हाँ भीग लूं
ये जो आँखें हैं, आँखों की गुमसुम जुबां को
मैं सीख लूं, हाँ सीख लूं
अनकही सी गुफ्तगू, अनसुनी सी जुस्तजू
बिन कहे, बिन सुने...

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